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चित्र गूगल कृपा |
(प्रिय पाठकों ! विनम्र आग्रह है कि लेख को पूरा पढ़ें , तभी अपनी कोई राय बनाएं। आतंकवाद से हर देश और हर व्यक्ति प्रभावित है. इसको नष्ट करने के लिए सभी के ईमानदार साथ की ज़रूरत है. )
शहरोज़ की क़लम से
"11 साल जेल में आतंकवादी बनकर जिस कोठरी में रहा, वह इस घर से बड़ी थी लेकिन वहां मैं एक ज़िंदा लाश था और सिर्फ़ इस उम्मीद पर ज़िंदा था कि जिस देश का मैं नागरिक हूं, उसका क़ानून पूरी तरह अंधा नहीं है और मुझे इन्साफ मिलेगा."यह कहना है आदम सुलेमान अजमेरी का जो 17 मई, 2014 को जेल से बाहर आए हैं. उन पर अक्षरधाम मंदिर हमले में शामिल होने का आरोप था और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन पर लगे सभी आरोप ख़ारिज कर दिए और उन्हें बाइज़्ज़त रिहा कर दिया. उनके साथ इस मामले में इनके समेत छह लोग रिहा हुए हैं. ग़ौरतलब है कि 24 सितंबर, 2002 को दो हमलावरों ने अक्षरधाम मंदिर के भीतर एके-56 राइफल से गोलियां बरसाकर 30 लोगों की जान ले ली थी, जबकि लगभग 80 को बुरी तरह ज़ख्मी हो गए थे.
अब सवाल क्या मौज़ूं नहीं कि दोषी को हम अब तक क्यों नहीं पकड़ सके. हमारा तंत्र इतना बौना क्यों हो गया. इधर, पुलिस ने वाह-वाही बटोरने के चक्कर में इन लोगों की ताबड़ तोड़ गिरफ़्तारी की. और इन्हें प्रताड़ित कर इनसे जबरन अपने अनुकूल बयान ले लिए. इन्हें लश्कर-ए-तय्यबा का खूंख्वार आतंकवादी घोषित कर दिया। इसके बाद शुरू हुई इन बेकसूरों के घर वालों की परेशानी। बच्चे को घर से बहार निकलना छूट गया. उनकी पढ़ाई छूट गयी. माँ बिलखते-बिलखते चल बसी. अब जब देश की सर्वोच्च अदालत ने इन्हें बा इज़्ज़त रिहा कर दिया, तो इनकी प्रताड़ना, मानहानि, रोज़गार छूटना, बच्चों की पढाई और इस दरम्यान अपनों की मौत इसका हर्जाना कौन देगा। ऐसे मामलों में मीडिया वाले भी कम दोषी नहीं हैं. ऐसी ख़बरों को पुलिस के हवाले से नमक-मिर्च लगा लगाकर छापते हैं. रोज़ नए-से-नए खुलासे करने में टीवी एंकर अपनी गर्दनें फुलाते हैं. आरोपी को तुरंत ही आतंकवादी बना देना। जबकि यह पत्रकारीय मूल्यों के विरुद्ध है.
आतंक ने विश्व में लाखों निर्दोष बुज़ुर्ग, स्त्री और बच्चे, युवाओं को हलाक किया है. भारत और पाकिस्तान भी इसकी हिंसा से दो-चार है. भले, हमारा सुरक्षा अमला सही दोषियों को नहीं दबोच सका हो(अधिकतर मामले में ऐसे आरोपी कोर्ट से रिहा हो चुके हैं ). लेकिन नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति नवाज़ शरीफ़ ने जिस गर्मजोशी के साथ मुलाक़ात की. आतंकवाद के ख़ात्मे का संकल्प लिया। महाद्वीप के दोनों दिग्गजों से यह गुज़ारिश है कि यह संकल्प धरा पर भी उतरे।
नवाज़ से गुज़ारिश
नवाज़ साहब! कोई बहाना मत कीजियेगा। सब जानते हैं कि भारतीय उप महाद्वीप में लश्कर-ए-तय्यबा और तालीबानी ग्रुप आतंक को अंजाम दे रहा है. पाक को अपने यहां के कैंप को ध्वस्त करना चाहिए। आपको अपने यहां लोकतंत्र को मज़बूत करना होगा ताकि सरकारी काम-काज में फ़ौजी दख़ल कम हो. क्योंकि कई बार ख़बरें मिली हैं कि कश्मीर के बहाने आपकी फ़ौज आतंकवादियों की मदद लेती है. आतंकवाद को मटियामेट करने के बाद ही हम अच्छे पड़ोसी बन सकते हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी विरासत साझा है.
मोदी से आग्रह
मुल्क के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह है कि आतंकवाद को ख़त्म करने के लिए बेहद ईमानदारी से प्रयास किये जाएँ। दहशतगर्दी फैलाने वालों को सख्त से सख्त सज़ा मिले। लेकिन सरकार को यह भी ध्यान रखना होगा कि इसमें निर्दोष युवा बलि का बकरा न बने. यदि संदेह के आधार पर पुलिस किसी को हिरासत में ले या गिरफ़्तार करे तो मीडिया तुरंत उसे आतंकवादी या मास्टर माइंड बतलाने की हड़बड़ी न दिखाए।
हम जैसे ढेरों लोग भारत-पाक की दोस्ती के हिमायती हैं. हमें आस है कि आप दोनों जल्द ही साझी रणनीति बनाकर आतंकवाद के बनते गढ़ों को ज़मींदोज़ कर देंगे।
अरब के शेख़ों कान तुम्हारे भी खुलें
संसार में इस्लाम के नाम पर जहाँ-जहाँ भी आपके कथित जिहादी खूंरेज़ी कर रहे हैं, उनमें सभी अहल-ए -हदीस विचारधारा के समर्थक हैं. यह कोई ढंकी-छुपी बात नहीं रह गयी कि आप अपने गुनाहों को ढंकने के लिए इनकी आर्थिक मदद करते हैं. आपके यह जिहादी हमारे पढ़ने वाले युवाओं को वर्गला कर जन्नत का ख्वाब दिखाते हैं. फिर उसके पासपोर्ट वीज़ा की शक्ल में उस मासूम की कमर में खुदकश बम बाँध देते हैं. इससे वह भले जन्नत में न जाते हों, लेकिन कई नस्लों को जहन्नुम के हवाले ज़रूर कर जाते हैं. तो शेख साहब! अब अय्याशी छोड़िये। तेल के कुंए ज़्यादा दिन काम नहीं आएंगे। बच्चों को पढ़ाइये। हमारे बच्चों को भी पढ़ने दीजिये। इस्लाम की गलत व्याख्या कर फ़िज़ूल ख्वाब मत दिखाईये।
अंकल सैम कब होगी चौधराहट कम
अफगानिस्तान से रूस की दखल कम करने के लिए आपने अरब और पाकिस्तान के गुरगुओं की बदौलत दहशतगर्दों को जन्म दिया। उसे खुराक देनी शुरू की. उसे हथियार देने के साथ ट्रेनिंग भी दी. अब जब रूसी फौजी अफगानिस्तान से चले गए तो वहाँ की बदहाली शुरू हो गयी. समाज कूपमंडूक होने लगा. हँसते बच्चे, खिलखिलाते युवाओं का स्कूल- कालेज जाना बंद हो गया. लडकियां क़ैद कर दी गयीं। आपके परवरिश से परवान चढ़े तालिबानी आपस में ही मरने-कटने लगे. जब आपने रसद बंद कर दी, पाक ने हमदर्दी, तो ज़ाहिर है, उसने आपको ही डसने को फन काढ़ लिया। ट्विन टावर नेस्ट नाबूद होने के बाद आपने मिटटी के बुर्ज़ों को ढहाना शुरू किया। अनगिनत बेक़सूर बमबारी के ग्रास बने. फिर लाशों को रोटियां खिलाने की क़वायद।
अंत में आपने लोकतंत्र के नाम पर हामिद करज़ई की कठपुतली सरकार बनवायी। खैर! क़िस्साकोताह यह है कि इराक़, लीबिया, वियतनाम और अफगानिस्तान में आपको लोकतंत्र की याद आती है. आपका मानवाधिकार अरब पहुँच कर क्यों सजदे करने लगता है. यहां एक वंश की बादशाहत आपकी नींद ख़राब क्यों नहीं करती। और आपकी खुफिया यह भी तो जानती है कि शिक्षा संस्थानों के नाम पर यहां के शेख इन आतंकवादियों को रक़म भी मुहैय्या कराते हैं. विश्व मुखिया बनने के लिए इन्साफ पसंद बनना होगा। ऐसी चौधराहट तुम्हारी ज़्यादा दिनों तक नहीं चलने वाली, अभी भी चेत जाओ.